गरीब माँ के बेटे मोदी की हर नीति में गरीब का हित सबसे पहले होता है



प्रधानमंत्री मोदी के पास भले अन्य नेताओं की तरह खुद के आलीशान बंगले, बड़े-बड़े बैंक बैलेंस, चमचमाती कारें और महँगे साजो सामान न हों लेकिन उनके पास माँ जरूर हैं जिनका आशीर्वाद वह समय-समय पर जरूर लेते हैं और माँ का खास ख्याल भी रखते हैं।




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितम्बर 2019 को 69 साल के हो गये। प्रतिदिन 24 में से 18 घंटे काम करने वाले भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के लिए देश सेवा ही सबकुछ है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े पद तक पहुँचने का उनका सफर हमारे लोकतंत्र की ताकत को दर्शाता है जहाँ सामान्य परिवार से जुड़ा व्यक्ति भी शीर्ष पद तक पहुँच सकता है। आज हम 'नमो, नमो', 'मोदी मोदी', 'मोदी मैजिक', 'मोदी है तो मुमकिन है', हर हर मोदी घर घर मोदी जैसे नारे सुनते हैं, खास बात यह है कि यह नारे सिर्फ भाजपाई ही नहीं आम लोग भी लगाते हैं। आम लोग यदि किसी नेता के नाम के नारे लगाएं तो समझ लीजिये नेता कोई साधारण नहीं असाधारण व्यक्तित्व है। नेता भी ऐसा जो संघ कार्यालय से एक झोला लेकर भाजपा में काम करने आ गये, वही झोला लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय पहुँच गये और उसी झोले को थोड़ा ठीकठाक कर प्रधानमंत्री कार्यालय आ गये। शायद देश को मोदी के रूप में पहला ऐसा प्रधानमंत्री मिला जिसने गरीबी करीब से देखी है, जिसकी माँ दूसरों के घरों में काम करती थी, जिसने घर का खर्च चलाने के लिए रेलवे स्टेशन पर चाय बेची, जिसने हिमालय की चोटियों पर बरसों संन्यासी रूप में गुजारे, जिसने गुजरात को ऐसा चमकाया कि देश ही नहीं दुनिया ने इस चमक और इस चमक के पीछे दिन-रात की मेहनत को महसूस किया। प्रधानमंत्री मोदी के पास भले अन्य नेताओं की तरह खुद के आलीशान बंगले, बड़े-बड़े बैंक बैलेंस, चमचमाती कारें और महँगे साजो सामान न हों लेकिन उनके पास माँ जरूर हैं जिनका आशीर्वाद वह समय-समय पर जरूर लेते हैं और माँ का खास ख्याल भी रखते हैं। प्रधानमंत्री का प्रयास रहता है कि वह अपने जन्मदिन पर अपने गृहराज्य जाएं और माँ का आशीर्वाद लें। माँ भी बड़ी तल्लीनता के साथ अपने बेटे का इंतजार करती हैं और जब यह बेटा मिलता है तो उस पर सारा लाड़ उड़ेल देती हैं। यह एक गरीब माँ की ही दी हुई सीख है जो मोदी अपनी हर नीति में गरीब का हित सबसे पहले देखते हैं।

 


जहाँ तक मोदी के राजनीतिक सफर की बात है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से अपने जीवन की शुरुआत करने से लेकर केंद्र की राजनीति में आने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने हर मैदान फ़तह करते हुए प्रधानमंत्री के तौर पर न केवल अपनी दूसरी पारी का आग़ाज़ किया बल्कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गए। हालिया लोकसभा चुनावों में राष्ट्रवाद और विकास के नारे को बुलंद करते हुए मोदी ने न केवल बेबाक हो कर अपनी बात रखी बल्कि चुनावी महाभारत में अभिमन्यु के साथ-साथ अर्जुन की भूमिका भी निभाई। तमाम आरोपों प्रत्यारोपों के बाद जब पहले से बड़ी जीत हासिल हुई तो मोदी ने बड़ी विनम्रता से कहा कि वह पुरानी बातें भूल कर 'सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास' के मूल मंत्र के साथ आगे बढ़ेंगे।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने तक मोदी का सफर लंबा और उतार-चढ़ाव भरा रहा। 2014 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी गुजरात में 12 साल तक मुख्यमंत्री रहे। साथ ही उन्होंने पार्टी में तमाम तरह की जिम्मेदारियां निभाईं। उनकी छवि एक विकास पुरुष और भाजपा के ऐसे कर्णधार की रही जिनकी वजह से भाजपा अपने दम पर 303 सीटें जीत गई। 



 

प्रधानमंत्री के रूप में पिछले कार्यकाल के दौरान मोदी की महत्वपूर्ण पहलें जनधन योजना, 'डिजिटल इंडिया', आयुष्मान भारत, सभी को आवास, किसान सम्मान योजना, शौचालय एवं स्वच्छता अभियान आदि हैं। नोटबंदी और जीएसटी उनके कार्यकाल की महत्वपूर्ण सुधार पहल हैं।

 

उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा आतंकी हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक को मोदी सरकार के मजबूत फैसले के रूप में देखा गया। लोकसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय सुरक्षा सहित एयर स्ट्राइक के मुद्दे को भाजपा ने सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर रखा। और नतीजा सबके सामने है।

 

17 सितंबर 1950 को गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर में जन्मे मोदी के पिता का नाम दामोदर दास और मां का नाम हीराबेन है। बचपन में मोदी वडनगर स्टेशन पर अपने पिता और भाई किशोर के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। स्कूल के दिनों में मोदी एक्टिंग, वाद-विवाद, नाटकों में भाग लेते और पुरस्कार जीतते थे। वह एनसीसी में भी शामिल हुए। अभिनय का शौक 1975 में आपातकाल के दिनों में भी उनके काम आया जब मोदी सरदार का रूप धर कर कई महीने पुलिस को छकाते रहे।

 

बचपन से ही संघ की तरफ झुकाव रखने वाले मोदी ने 1967 में 17 साल की उम्र में घर छोड़ दिया। अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता लेने वाले मोदी बरसों बरस संघ के प्रचारक रहे। 1974 में वह नव-निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। पढ़ाई जारी रही और मोदी ने गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए किया।

 

मोदी के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि कभी उन्होंने संघ में कुर्ते की बांह इसलिए छोटी करवाई थीं, कि कपड़ा ज्यादा गंदा न हो क्योंकि उन्हें खुद ही कपड़े धोने होते थे। लेकिन आज देखिये, वह छोटी बांह वाला कुर्ता देश भर में मशहूर हो कर मोदी ब्रांड का कुर्ता बन गया है। 

 

हिन्दी और गुजराती भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले मोदी का भाजपा से परिचय संघ के जरिये हुआ। 1980 के दशक में वह गुजरात की भाजपा इकाई में शामिल हुए। 1988-89 में उन्हें भाजपा की गुजरात इकाई का महासचिव बनाया गया। लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा करने के बाद 1995 में मोदी को भाजपा का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया। समय के पाबंद मोदी को 1998 में महासचिव (संगठन) की जिम्मेदारी मिली और इस पद पर वह अक्‍टूबर 2001 तक रहे। 2001 में केशुभाई पटेल को हटा कर मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया और इस पद पर वह लगातार 2014 तक रहे। सितंबर 2013 में मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। इसके बाद हुए 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा 282 सीटें जीतने में सफल रही और केंद्र में राजग की सरकार बनी। इस बार ''मोदी मोदी'' के नारे के बीच यह संख्या बढ़ कर 303 हो गई।

 

दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने भाजपा के संकल्प-पत्र में किये गये वायदों को पूरा करना शुरू किया और सरकार के पहले 100 दिनों में तीन तलाक समाप्त करने वाला विधेयक पारित कराने, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त कराने जैसे कई बड़े कदम उठाये। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने पूरी दुनिया में पाकिस्तान को अलग-थलग करने में जो बड़ी सफलता हासिल की है और विश्व के सामने एक नये भारत की संकल्पना पेश की है उससे निश्चित ही भारत का भविष्य बेहद उज्ज्वल नजर आ रहा है।

 

-नीरज कुमार दुबे